
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर भावनाओं, आरोपों और ‘राजनीतिक नैतिकता’ की परिभाषा बहस का मुद्दा बन गई है। विधायक पूजा पाल, जिन्हें समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया है, अब खुलकर अखिलेश यादव और उनकी पार्टी की नीतियों पर सवाल उठा रही हैं।
अखिलेश की चुप्पी पर पूजा का सीधा वार
पूजा पाल ने सोशल मीडिया के ज़रिए एक ओपन लेटर में कहा:
“आपने मेरे पति के हत्यारों को सजा दिलवाने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। उल्टा, सदन से सड़क तक उनके लिए आवाज उठाई गई।”
अब सवाल ये उठता है: राजनीति में इंसाफ की दरकार भी ‘वोट बैंक’ से तय होती है क्या?
दोहरा मापदंड? पूजा बोलीं – “मैंने वोट दिया तो गुनाह, आपकी पत्नी ने दिया तो क्या योगदान?”
पूजा पाल का दावा है कि उन्होंने केवल बीजेपी प्रत्याशी को वोट दिया था — शुक्रिया कहने के लिए — लेकिन यही काम जब खुद अखिलेश और उनकी पत्नी करते हैं, तो पार्टी में सब “स्वाभाविक” मान लेते हैं।
“एक विधवा, अति-पिछड़ी जाति की महिला में आपको गुनाह दिखता है, और आपकी पत्नी वही करे तो वह नीति बन जाती है?” — पूजा ने सीधा सवाल किया।
यह बयान भारतीय राजनीति के “कौन कब किससे मिला और क्यों मिला” वाले मैराथन ड्रामे में एक नया ट्विस्ट जोड़ता है।
न्याय बनाम राजनीति: पूजा पाल का बड़ा आरोप
पूजा पाल ने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि “बीजेपी में अपराधी भी सजा पाते हैं, पर सपा में उनके लिए समर्थन मिल जाता है।”
उनका यह बयान सीधे-सीधे सपा की वोटर अपील बनाम अपराधीकरण की पुरानी बहस को फिर हवा देता है।
“मेरी भी हत्या हो सकती है, जिम्मेदार सपा होगी”
अपने पत्र में पूजा ने यह चौंकाने वाला दावा किया:
“मेरे पति की तरह मेरी भी हत्या हो सकती है। इसकी जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी और श्री अखिलेश यादव की होगी।”
इससे माहौल और गंभीर हो गया है — और सरकार की सुरक्षा एजेंसियों को अब स्थिति पर गौर करना पड़ सकता है।
“मैं झुकी नहीं, अतीक के सामने भी नहीं” – पूजा की भावुक अपील
पूजा पाल ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी किसी माफिया या दबाव के सामने सिर नहीं झुकाया, चाहे वो अतीक अहमद जैसा बाहुबली ही क्यों न रहा हो।
“आप अतीक अहमद जैसे पापी के सामने झुक सकते हैं, पर मैं कभी नहीं झुकी।”
यह बयान सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि एक स्त्री की व्यक्तिगत लड़ाई और न्याय की लड़ाई को भी दर्शाता है।
राजनीति में अब “जो करे सो नीति, जो हम करें सो गुनाह”?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब नया सूत्र चल पड़ा है:
“सदन में समर्थन और सड़क पर सियासत — दोनों में जो फर्क आम कार्यकर्ता न समझे, वो शायद VIP नीति समझे।”
पूजा पाल का निष्कासन कहीं राजनीतिक अनुशासन है या फिर एक आत्मनिर्भर और मुखर महिला की आवाज़ को दबाने की कोशिश? — ये सवाल जनता के हाथ में है।
राजनीति में इंसाफ अब भी टेबल पर?
पूजा पाल के आरोपों ने सपा के अंदर की रणनीतिक सोच, दोहरे मापदंड और दलित-पिछड़े प्रतिनिधित्व को लेकर एक खुली बहस को जन्म दे दिया है।
अब देखना है कि अखिलेश यादव इस पर क्या जवाब देते हैं — या फिर यह मामला भी “फॉरवर्डेड विदाउट कमेंट” कर दिया जाएगा।
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